♫musicjinni

Parashuram ki pratiksha Ramadhari Singh Dinkar javaniya Kavita परशुराम की प्रतीक्षा जवानियाँ कविता

video thumbnail
Prashuram ki pratiksha
Prashuram ki pratiksha by Ramadhari Singh Dinkar
Ramadhari Singh Dinkar
javaniya a by Ramadhari Singh Dinkar
परशुराम की प्रतीक्षा by Ramadhari Singh Dinkar
जवानियाँ कविता by Ramadhari Singh Dinkar

नये सुरों में शिंजिनी बजा रहीं जवानियाँ
लहू में तैर-तैर के नहा रहीं जवानियाँ

प्रभात-श्रृंग से घड़े सुवर्ण के उँड़ेलती
रँगी हुई घटा में भानु को उछाल खेलती
तुषार-जाल में सहस्र हेम-दीप बालती
समुद्र की तरंग में हिरण्य-धूलि डालती
सुनील चीर को सुवर्ण-बीच बोरती हुई
धरा के ताल-ताल में उसे निचोड़ती हुई
उषा के हाथ की विभा लुटा रहीं जवानियाँ

घनों के पार बैठ तार बीन के चढ़ा रहीं
सुमन्द्र नाद में मलार विश्व को सुना रहीं
अभी कहीं लटें निचोड़ती, जमीन सींचती
अभी बढ़ीं घटा में क्रुद्ध काल-खड्ग खींचती
पड़ीं व’ टूट देख लो, अजस्र वारिधार में
चलीं व बाढ़ बन, नहीं समा सकी कगार में
रुकावटों को तोड़-फोड़ छा रहीं जवानियाँ

हटो तमीचरो, कि हो चुकी समाप्त रात है
कुहेलिका के पार जगमगा रहा प्रभात है
लपेट में समेटता रुकावटों को तोड़ के
प्रकाश का प्रवाह आ रहा दिगन्त फोड़ के
विशीर्ण डालियाँ महीरुहों की टूटने लगीं
शमा की झालरें व’ टक्करों से फूटने लगीं
चढ़ी हुई प्रभंजनों प’ आ रहीं जवानियाँ

घटा को फाड़ व्योम बीच गूँजती दहाड़ है
जमीन डोलती है और डोलता पहाड़ है
भुजंग दिग्गजों से, कूर्मराज त्रस्त कोल से
धरा उछल-उछल के बात पूछती खगोल से
कि क्या हुआ है सृष्टि को? न एक अंग शान्त है
प्रकोप रुद्र का? कि कल्पनाश है, युगान्त है
जवानियों की धूम-सी मचा रहीं जवानियाँ

समस्त सूर्य-लोक एक हाथ में लिये हुए
दबा के एक पाँव चन्द्र-भाल पर दिये हुए
खगोल में धुआँ बिखेरती प्रतप्त श्वास से
भविष्य को पुकारती हुई प्रचण्ड हास से
उछाल देव-लोक को मही से तोलती हुई
मनुष्य के प्रताप का रहस्य खोलती हुई
विराट रूप विश्व को दिखा रहीं जवानियाँ

मही प्रदीप्त है, दिशा-दिगन्त लाल-लाल है
व’ देख लो, जवानियों की जल रही मशाल है
व’ गिर रहे हैं आग में पहाड़ टूट-टूट के
व’ आसमाँ से आ रहे हैं रत्न छूट-छूट के
उठो, उठो कुरीतियों की राह तुम भी रोक दो
बढ़ो, बढ़ो, कि आग में गुलामियों को झोंक दो
परम्परा की होलिका जला रहीं जवानियाँ

व’ देख लो, खड़ी है कौन तोप के निशान पर
व’ देख लो, अड़ी है कौन जिन्दगी की आन पर
aव’ कौन थी जो कूद के अभी गिरी है आग में
लहू बहा? कि तेल आ गिरा नया चिराग में
अहा, व अश्रु था कि प्रेम का दबा उफान था
हँसी थी या कि चित्र में सजीव, मौन गान था
अलभ्य भेंट काल को चढ़ा रहीं जवानियाँ

अहा, कि एक रात चाँदनी-भरी सुहावनी
अहा, कि एक बात प्रेम की बड़ी लुभावनी
अहा, कि एक याद दूब-सी मरुप्रदेश में
अहा, कि एक चाँद जो छिपा विदग्ध वेश में
अहा, पुकार कर्म की; अहा, री पीर मर्म की
अहा, कि प्रीति भेंट जा चढ़ी कठोर धर्म की
अहा, कि आँसुओं में मुस्कुरा रहीं जवानियाँ

#RamadhariSinghDinkar
#Prashuramkipratiksha
#javaniyaKavitabyRamadhariSinghDinkar
#javaniyaKavita
#hindikavy.com

Parashuram ki pratiksha Ramadhari Singh Dinkar javaniya Kavita परशुराम की प्रतीक्षा जवानियाँ कविता

Disclaimer DMCA